त्राटक के अभ्यास मे आज हम बात करेगे मून त्राटक यानी
चंद्र त्राटक की. त्राटक का अर्थ यह है कि किसी भी वस्तु, बिंदु पर एकटक देखते
रहने की क्रिया. इस त्राटक के बहुत से लाभ है, जैसे कि...
बिपरीत परिस्थिती मे भी मन पर नियंत्रण बना रहता है.
ध्यान मे सफलता मिलती है.
डर दूर हो जाता है.
आपका स्वभाव कठोर से नरम हो जाता है.
मन मे नकारात्मक विचार दूर होकर सकारात्मक विचार आने लगते
है.
इसके अलावा अगर आप साधना क्षेत्र मे है तो साधना मे सफलता
मिलती है.
अगर आप हीलिंग करते है, यानी अध्यात्मिक उपचार करते है तो
उपचार करने की क्षमता बढ जाती है.
इस तरह से आपको अनगिनत लाभ मिलते है.
आईये अब जानते है चन्द्र त्राटक कैसे करते है.... यह १२-१२
दिन यानी २४ दिन का अभ्यास होता है. इसे शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से पुर्णिमा तक
अभ्यास किया जाता है जो कि १२ दिन का होता है. इसके बाद फिर अगले शुक्ल पक्ष की
चतुर्थी से लेकर पुर्णिमा तक पुनः अभ्यास करना होता है. यह अभ्यास टोटल २४ दिनो
का है.
रात के समय जहा से भी चंद्रमा दिखाई दे वहा
पर कुर्सी पर बैठ जाय. और एकटक चंद्रमा को देखते रहे या
त्राटक करते रहे. १ - २ मिनट अभ्यास करने के बाद चंद्रमा का
प्रकाश चारो तरफ फैलता हुआ महसूस होगा. यह अभ्यास पहले दिन ५ मिनट
के ऊपर न करे. दूसरे दिन पुनः यह अभ्यास शुरु करे. अब आपको कुछ
अलग-अलग जगह के दृश्य दिखाई देने लगेगे.
कुछ दिन नियमित अभ्यास करने पर पूरा आकाश रोशनी से भरा
हुआ नजर आयेगा. इस तरह से २४ दिन यह त्राटक करने से यह
अभ्यास सिद्ध हो जाता है.
अभ्यास की शक्ति आपके अंदर टिकी रहे इसके लिये आप किसी भी ब्यक्ति
से घमंड से बात न करे. इस तरह से आप इस त्राटक की शक्तियो को अपने
अंदर टिका पायेगे.
आशा है कि यह त्राटक आपके लिये बहुत ही उपयोगी होगा.
आज के इस कलियुग मे लोग आगे बढने के लिये गला-काट प्रतिष्पर्धा
मे लगे हुये है. साम-दाम -दंड- भेद यानी किसी भी तरह से लोग आगे
बढना चाहते है. इसके लिये वे हर तरह के अच्छे-बुरे कार्य करने को
तैयार रहते है. आगे बढने की ईच्छा उन्हे शांत रहने नही देती. हमेशा
तनाव मे रहने की आदत हो जाती है. परिणाम स्वरूप शरीर को भी नुकसान
होना शुरु हो जाता है. अगर आप मेहनत करके अपने जीवन मे कुछ पा भी
जाते है, तब तक आप शारीरिक व मानसिक रूप से बहुत नुकसान उठा चुके
होते है.हम ये नही कहते कि आप अपना कार्य नही करे. हम तो सिर्फ ये
कहते है कि २४ घंटे मे सिर्फ ५ मिनट अपने मन के लिये भी दे. इसके
लिये ध्यान से बढकर कोई उपाय नही है. इसलिये आज हम सबसे पहले जानेगे
कि ध्यान करने नियम क्या है.
See Meditation rules
ध्यान हमेशा
एक ही जगह पर करना चाहिये.
हर उम्र के स्त्री-पुरुष- बच्चे ध्यान का अभ्यास कर सकते है.
हमेशा ठंडे पानी से नहॉ-धोकर पवित्र भाव से ही ध्यान करना
चाहिये.
ध्यान हमेशा लकडी
की चौकी पर, चटाई पर, सूती आसन या ऊनी आसन पर बैठकर करना चाहिये.
ध्यान करते समय ढीले-ढाले वस्त्र ही पहने.
काले व नीले रंग को छोडकर कोई भी रंग का वस्त्र पहना जा
सकता है
ध्यान का समय बृम्ह मुहुर्थ यानी सुबह ४ से ६ बजे के बीच का
शुभ होता है.
२४ घंटे मे कम से कम १० मिनट तक अध्यात्मिक किताबे अवश्य पढे.
जिन्होने गुरु मन्त्र लिया है, वे ११ बार गुरु मन्त्र का जाप
कर के ही ध्यान का अभ्यास करे.
मासिक-धर्म के दौरान स्त्रियॉ ३ दिन तक अभ्यास के पहले गुरु
मन्त्र न जपे.
अगर आप बिमार है तो गुरु से आज्ञा लेकर ही अभ्यास करे.
वैसे तो ध्यान का किसी धर्म संप्रदाय से कुछ भी लेना देना नही
है, फिर भी अगर आप ध्यान कर रहे है तो अपने-अपने धर्म से
संबंधित ईश्वर का नाम लेकर ही अभ्यास करे.
क्या नही करना चाहिये...
व्यसन
यानी धूम्रपान-मद्यपान न करे.
मांसाहारी व तामसिक
पदार्थ का सेवन कम करे.
मिर्च-मसाला, खटाई, तली हुयी चीजो से दूर रहने की कोशिश करे.
सिंथेटिक कपड़े नहीं पहनने चाहिये.
धातु के आभूषण, चमडे के वस्तुये
दूर रखे.
रुद्राक्ष, चंदन, तुलसी तथा
हकीक स्टोन की मालाये पहन सकते है.
अभ्यास के दौरान चश्मा न पहने.
अभ्यास के दौरान शरीर मे उर्जा
बढ जाती है, इसलिये अभ्यास के बाद तुरंत पानी न पिये.
आशा
है कि ये उपाय से ध्यान करने मे मदत मदत मिलेगी.
हर वर्ष चैत्र पूर्णिमा पर हनुमान जयंती
मनाई जाती है। भगवान हनुमान
इस कलयुग के तुरंत प्रसन्न होने वाले देवता
माने जाते हैं। भगवान हनुमान का सिर्फ ध्यान करने से कृपा
मिलने लगती हैं। ये अपनी पूजा- साधना मे लापरवाही बर्दास्त
नही करते। आगे कुछ मन्त्र दिये जा रहे है जिनका उपयोग हनुमान जयंती के दिन या किसी
भी मंगलवार को विधिवत करे सर्व मनोकामना पूर्ण होती है.
॥ॐ हं हं हं हनुमंते नम:॥
कोर्ट-कचहरी, सरकारी कामो मे अडचने, हर तरह का वाद-विवाद, तथा जमीन जायदाद से
जुडी प्रत्येक समस्या के लिये ५४० बार इस मंत्र को हनुमान मंदिर मे जाकर अवश्य जपे.
॥ॐ हुं हुं हं हनुमंते
रुद्रात्मकाय हुं हं फट्॥
जब शत्रु अधिक परेशान कर रहे
हो और कोई उपाय सूझ न रहा हो, जीवन - मृत्यु का पृश्न आ
गया हो तो ५४० बार इस मंत्र को हनुमान मंदिर मे जाकर अवश्य जपे.
॥ॐ हं हं पवनसुताय हं नमः॥
श्री
हनुमानजी की कृपा
व सुख-समृद्धी प्राप्त करने के लिये
इस मंत्र को ४१ दिन तक जपे.
॥ॐ नमो हं मर्कट मर्कटाय
हं स्वाहा॥
अगर यह मंत्र नियमित जपे तो शत्रु के मन मे आपके प्रति दुश्मनी की भावना धीरे-धीरे
समाप्त होने लगती है.
॥ॐ नमो भगवते अंजनीपुत्र महाबलाय
हं स्वाहा॥
अगर आप
असाध्य बिमारियो से परेशान हो तो इस मंत्र का
नियमित जाप करें।
॥ॐ नमो भगवते हं हनुमंते
हं नम:॥
हर तरह की सुख समृद्धी के लिये इस मन्त्र का जाप करे
॥ॐ हं पवनसुताय मम् कार्य कुरु कुरु हं नमः॥
कठिन से कठिन कार्य मे सफलता प्राप्त करने के लिये इस
मन्त्र का नियमित अभ्यास करे.
॥ॐ हं राम भक्त हनुमंता मम् कार्य साधय साधय नमः॥
मन-पसंद वर की प्राप्ति के लिये इस मन्त्र का नियमित जाप करे.
ये सभी मन्त्र आप हनुमान मंदिर मे दर्शन कर जाप करे और हर मन्त्र कम से कम ५४० बार
या ५ माला अवश्य जपे. अगर आपके आस-पास हनुमान मंदिर न हो तो श्री हनुमान जी के फोटो
के सामने भी जप सकते है. और ये मंत्र हनुमान जयंती से या किसी भी मंगलवार से
शुरु कर जब तक आपकी इच्छा पूरी नही होती, तब तक जाप जारी रख सकते है.
सोमवार भगवान शिवजी का दिन माना जाता है इस दिन शिवजी की विशेष पूजा की जाती है ।इस पित्र शांती और चन्द्र ग्रह से संबंधित उपाय किये जाते है । अगर आप इन उपाय को करते है तो आपके धन संबधी परेशानिया और मानसिक तनाव कम हो जाता है,सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है, पारिवारिक क्लेश समाप्त होने लगता है, वैवाहिक सबंध मधुर होने लगते है. पित्र शांत होते है, जिससे वंश बृद्धि होती है. तो आईये जानते सोमवार के दिन किये जाने वाले कुछ उपाय –
अगर विवाह मे अडचने आ रही हो, किसी कारण से रिश्ता होते होते टूट रहा हो, या
मन-पसंद वर की प्राप्ती के लिये सोमवार के दिन किसी भी शिवलिंग पर केशर मिला दूध
अर्पित करे और "ॐ नमः शिवाय" की जगह पर "ॐ नमः शिवाये" का जाप करे. ऐसा कम से कम १६
सोमवार करे.
सुख-समृद्धि के लिये प्राप्ति के लिए मछलियों को आटे की गोलियां खिलाएं। गोलियां खिलाते समय भगवान
महादेव का ध्यान करते रहना चाहिए।
सोमवार के दिन ७ बेल पत्तो पर चंदन से "ॐ
नमः शिवाय
"
लिखकर
शिवलिंग पर अर्पित करें.
इससे आपकी हर तरह की मनोकामना पूर्ण हो जाती है.
कर्ज मुक्ति के लिये सोमवार को शिव-दर्शन करने बाद गाय- बैल को हरा चारा
खिलाये.
सोमवार को शिव-दर्शन के बाद गरीबो को भोजन
कराये लेकिन पैसे दान करने से बचे. इससे आपके ऊपर माता अन्नपूर्णा की कृपा बनी रहती
है.
सोमवार के दिन जल
में काले तिल मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करते समय "
ॐ
नमः शिवाय
"
का जाप
करें। ऐसा करने से
परिवार मे क्लेश समाप्त होने लगता है.
घर मे
पारिवारिक सुख-शांती के लिये
घर में सोमवार को
पारद शिवलिंग स्थापित कर
पूजन करे.
सोमवार
को आटे मे गंगाजल डालकर गूथ ले और उसके ७ शिवलिंग
बनाकर उनका जलाभिषेक करने से संतान प्राप्ति
के योग बनते हैं।
सोमवार के दिन ७ बेलपत्र लेकर भगवान शिव
को चढाये और
ॐ
जूं सः
मंत्र
का जाप करते रहें.
इससे घर मे किसी को बिमारी है तो वह जल्दी ठीक होने लगती है.
सोमवार को सुख-शांती और पापो से मुक्ति
के लिये भगवान शिव को तिल और जौ
अर्पित करें और "ॐ अघोराय जूं सः
ॐ" का जाप करे. ऐसा १६ सोमवार तक करे.
सोमवार के दिन भगवान शिव को दूध और जल से अभिषेक करे और बेल पत्र चढ़ाये. और चन्द्र
ग्रह की शांती के लिए दूध और चावल का दान अवश्य करे. इससे मन शांत व एकाग्र हो जाता
है.
सोमवार के दिन १०८ बार महामृत्युंजय मन्त्र का जाप कर शिव-दर्शन अवश्य करे.
इससे आपका परिवार स्वस्थ व निरोगी रहता है.
सोमवार के दिन शिव - दर्शन के बाद किसी सुहागिन स्त्री को सुहाग का सामान अवश्य
दान करे. इससे आपका वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है.
सोमवार के दिन भगवान शिव को गेहू अर्पित करने से संतान योग प्रबल हो जाते है.
सोमवार के दिन भगवान शिव को जल में सफेद तिल मिलाकर बेल पत्र के साथ अर्पित करें।
और उनसे अपनी व परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करें। ऐसा करने से कार्य क्षेत्र
में आने वाली बाधाये कम होने लगती है.
सोमवार के दिन "ॐ नमः शिवाय ॐ" मंत्र का 108 बार जाप करे. इस तरह से ७ सोमवार करने
से रोजगार में वृद्धि होनी शुरू हो जाती है. तथा व्यापार में वृद्धि और नौकरी करने
वालो को प्रमोशन मिलने के योग प्रबल हो जाते है.
सोमवार
के दिन महामृतुन्जय यंत्र को अपने घर व अपने गाडी मे रखे. इससे हर तरह के
हादसे-दुर्घटना, चोरी से बचाव होता है.
सोमवार
के दिन स्फटिक का शिवलिंग का घर मे स्थापना करे. इससे घर मे सुख-शांती बनी रहती
है.
सोमवार
को चावल का दान करने से चन्द्र दोष से बचाव होता है वही आपके पितरो को शांती
मिलती है, इससे वंश बृद्धि का आशिर्वाद मिलता है.
एक शांत कमरे का चुनाव करे कमरे मे रोशनी थोडी कम रखे..
अब प्राणायाम करे यानी ५ बार गहरी श्वास खीचे और जितना हो सके रोक कर रखे,,,, फिर
धीरे- धीरे छोडे. इस तरह से ५ बार करे. अब मणीपुर चक्र की बीज मन्त्र
रं का उच्चारण १ मिनट तक करे..
अब अपने छाती और पेट के बीच का स्थान जिसे मणीपुर चक्र या सूर्य चक्र कहते है, उस
स्थान पर थोडा पिंच करे, जिससे कि हल्का सा दर्द हो. अब उस स्थान ध्यान केंद्रित करे.
शुरु शुरु मे ध्यान भटक जायेगा. यह पहले दिन चलता रहेगा. इस तरह से पहले
दिन यह अभ्यास ५-६ मिनट तक ही करे.
अब दूसरे दिन पुनः अभ्यास शुरु करे और १ मिनट तक रं बीज मन्त्र का उच्चारण करने के
अपने मणीपुर चक्र पर पिंच करे और उस पर ध्यान केंद्रित करे... धीरे- धीरे मणीपुर
चक्र पर कंपन सा महसूस होगा जो कि आगे चलकर बढता जायेगा.
इस तरह से रोज ५ मिनट और २१ दिन तक अभ्यास नियमित करे... इस अभ्यास से आपका
मणीपुर चक्र या
सोलार चक्र चैतन्य होने लगता है..
मणीपुर चक्र का संबंध
अग्नि
तत्व से होता है... और
अग्नि तत्व चैतन्य होने से उसका प्रभाव
रोग प्रतोरोधक क्षमता पर पडता
है.. इसकी वजह से ब्यक्ति
अपना बिमारियो से बचाव करता है.. तंत्र बाधा तथा किसी भी प्रकार की निगेटिव उर्जा
से शरीर को सुरक्षा मिलती है...
इससे हीन भावना, डर, निराशा की भावना दूर होकर आत्मविश्वास , एकाग्रता, ईच्छाशक्ती बढ जाती है..
शारीरिक, मानसिक व अध्यात्मिक शक्तिया बढनी शुरु हो जाती है... इसलिये इस
चक्र का नियमित अभ्यास करे
और हर तरह की बुरी शक्तियो से, नकारात्मक उर्जा से, बिमारियो से दूर रहे... आशा है
कि आप इस नियम का पालन व अभ्यास करके अपने आपको स्वस्थ व निरोगी बनायेंगे....
कहते है कि ब्रम्हांड की रचना पृथम शब्द ओंकार के साथ ही शुरु हुयी
थी. और ॐ से ही मन्त्रो की रचना
भी हुयी. दुनिया मे सबकुछ ओंकार
मे ही समाविश्ट है. आत्मिक शांती तथा मोक्ष का द्वार ही ओंकार है.
हमने ओंकार ध्यान के बारे सुना है, ओंकार जप के बारे मे सुना है.
लेकिन आज हम ॐकार त्राटक के बारे मे जानेगे. त्राटक की खास बात यह
है कि आप जिस भी वस्तु, देवता या चक्र पर त्राटक करते है, तो
उसके गुण आपके अंदर आ जाते है. तो सबसे पहले जानते है ओंकार त्राटक
के लाभ कौन कौन से है.
किसी क्षेत्र मे अगर आप पिछड गये हो चाहे वह ज्ञान का क्षेत्र
हो, कर्म का क्षेत्र हो, किसी ब्यवसाय का क्षेत्र हो, तो. इस
कारण से उदासीनता बढ जाती है. यहा आपको ओंकार त्राटक से लाभ
मिलता है.
हर तरक की सुरक्षा के साथ दुर्घटना मे भी सुरक्षा मिलती
है
ओंकार त्राटक से बुरे कर्म या बुरे संस्कार नष्ट होकर शरीर मे
साकारात्मक उर्जा का निर्माण शुरु हो जाता है.
ओंकार त्राटक से धीरे धीरे आपके आचरण मे सुधार आना शुरु हो जाता
है, स्वभाव विनम्र हो जाता है. चेहरे पर तेज बढने लगता है.
ओंकार त्राटक से अध्यात्मिक रूप से आनंद आने लगेगा.
ओंकार त्राटक से मन मे संतोष, संयम तथा तृप्ती का अहसास होना
शुरु हो जाता है.
ओंकार त्राटक से आपकी वाणी की व मार्केटिंग क्षमता बढनी शुरु
हो जाती है.
ओंकार त्राटक से अघ्यात्मिक चिकित्सा करने की क्षमता बढ जाती
है.
ओंकार त्राटक से जब कभी सामने वाले व्यक्ति को कोई राय-मशवरा
देगे तो वह उसके लिये अचूक साबित होगी.
समाज मे मान-सम्माम मिलना शुरु हो जाता है.
धन कमाने के स्रोत बढने शुरु हो जाते है.
अब जानते ओंकार त्राटक कैसे करे
एक शांत कमरे का चुनाव करे कमरे मे रोशनी थोडी कम रखे.. अब अपने ठीक सामने
ॐ का लाल रंग चित्र दिवार पर लगाकर जमीन पर या कुर्सी पर बैठ जाय. .. और
ॐ मन्त्र का उच्चारण १ मिनट तक करे.. अब एकटक उस चक्र को देखते रहे...
देखते ही देखते
ओंकार मे सुनहरे रंग की रोशनी दिखाई देने लगेगी.. पहले दिन यह
अभ्यास ५ मिनट तक ही करे.... अब दुसरे दिन अभ्यास पुनः शुरु करे.. और
ॐ मन्त्र
का उच्चारण १ मिनट तक करे.. और
ओंकार पर त्राटक यानी एकटक देखते रहे....
इस तरह से रोज ५ मिनट और २१ दिन तक अभ्यास नियमित करे... इस अभ्यास से आपका
आज्ञा चक्र या
भ्रू मध्य चक्र चैतन्य होने लगता है..
आज्ञा चक्र का संबंध
सुनहरे रंग से है... इसलिये जो कुछ भी महसूस होगा वह अधिकतर सुनहरे रंग
का ही होगा. यह चक्र आपके अंदर के तमाम कमियो को दूर करने लगता है...
इस त्राटक से स्मरण शक्ति, आत्मविश्वास, मनोबल, इच्छाशक्ति की बढोतरी होनी शुरु हो
जाती है.
अगर आप नियमित अभ्यास, श्रद्धा, विश्वास व पूर्ण इच्छाशक्ति
के साथ ओंकार त्राटक का अभ्यास करेंगे तो अपने जीवन मे भौतिक व
अध्यात्मिक रूप पुर्णता प्राप्त करेंगे. आशा कि ये विधि को आजमायेगे
और अपने जीवन मे सफलता प्राप्त करेगे.
धार्मिक ग्रंथो के अनुसार चैत्र माह में शुक्ल पक्ष
की नवमी तिथि को प्रभु श्री राम का जन्म दिन माना जाता है यही दिन
रामनवमी कहलाती है।
देश के कई हिस्सों में रामनवमी का
त्योहार पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। हिंदू धर्म में
रामनवमी का विशेष महत्व है। भगवान
श्रीराम का जन्म वैसे
तो बेहद शुभ पर समय होता है, लेकिन इस शुभ दिन कुछ और दुर्लभ योग
भी बन जाते हैं। इस दिन कुछ विशेष साधना या पूजा की जाय तो सभी
प्रकार की मनोकामना पूर्ण हो जाती है.
याद रखे कि शुभ मुहुर्थ मे किया गया कार्य ही सफलता प्रदान करता
है. इस दिन कुछ उपाय करे तो आप अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकते है.
इस दिन कुवॉरी कन्या "॥ॐ श्रीं रामाय रामाय श्रीं नमः॥" का
१००१ जाप करे व अपने मन-पसंद वर की कामना करे, तो उनकी मनोकामना
पूर्ण होती है.
इस दिन पत्नि रात मे खीर बनाये और उस खीर को चंद्रमा की रोशनी
मे १ घंटा रखे, फिर पति-पत्नि मिलकर खाये तो दोनो मे कटुता
समाप्त होकर प्रेम बढता है तथा पति अपनी पत्नि से हमेशा वफादार
रहता है और वैवाहिक जीवन सु्खमय हो जाता है.
इस दिन एक कटोरी मे गंगा जल या पानी लेकर राम रक्षा मंत्र "ॐ
श्रीं ह्कीं क्लीं रामचंद्राय श्रीं नमः" का १०८ बार जाप करे
और संपूर्ण घर के कोने-कोने मे छिडकाव करे, इससे घर मे
भूत-प्रेत, नजर बाधा, तन्त्र बाधा तथा वास्तु दोष समाप्त हो
जाते है. यह उपाय अपने ऑफिस- दुकान या ब्यवसाय स्थल मे
भी कर सकते है.
इस दिन दान अवश्य करे
इस दिन सोने-चॉदी की खरीदी कर सकते है.
इस दिन अपनी दुकान का उद्घाटन कर सकते है.
इस दिन नये घर मे प्रवेश कर सकते है.
आशा है कि ये उपाय को आजमाकर अपने जीवन मे सफलता प्राप्त करेगे
आज हम यक्षिणी और उनकी रहस्यमयी शक्तियो के बारे मे जानेगे. हमारे शास्त्रो मे इनके नाम बार-बार आते है जैसे कि देवी-देवता के अलावा, दैत्य, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, अप्सराएं, पिशाच, किन्नर, वानर, रीझ, भल्ल, किरात, नाग, भूत-प्रेत आदि। ये सभी रहस्यमयी ताकते इंसानो से कुछ अलग थे। और ये सभी इंसानो की यहॉ तक कि देवताओ की भी किसी न किसी प्रकार से मदत करते थे. सात्विक गुणो मे देवी-देवताओ के बाद यक्ष - यक्षिणी का ही नाम आता है। इनमे से किसी को भी हमारा आज का विज्ञान स्वीकार नही करता यहा तक कि देवी-देवताओ को भी विज्ञान नही मानता.
लेकिन आज हम इनके बारे मे विज्ञान की दृष्टी से नही बल्कि अपने शास्त्रो की दृष्टी से जानेगे.
इनमे यक्ष-यक्षणी, गंधर्व, अप्सराये,किन्नर ये सभी सात्विक गुण वाले होते है. तथा अन्य सभी तमोगुण यानी तामसिक गुण वाले होते है.
लोग यक्ष-यक्षणी को भूत-प्रेत की तरह से मानते है, लेकिन यह सही नही है. आज हम कुबेर को भगवान की तरह ही मानते है जो कि ये यक्ष पजाति से है. और इन्हे यक्षराज भी कहा जाता है. संपूर्ण सृष्ठी मे जो अचल संपति है वह इन्ही की मानी जाती है. इनकी पूजा साधना लोग भौतिक सुख प्राप्त करने के लिये करते है. शास्त्रानुसार एक यक्ष ने ही अग्नि, इंद्र, वरुण और वायु का घमंड चूर-चूर कर दिया था।
लेकिन आज हम यक्षिणी की बात करेगे. शास्त्रानुसार 8 यक्षिणियां प्रमुख मानी जाती है. इनकी पूजा - साधना भी देवताओ की तरह ही होती है, जिससे ये प्रसन्न होकर संपूर्ण सुख की प्राप्ति कराते है. इनकी साधना स्त्री-पुरुष दोनो ही कर सकते है.
यक्षिणी साधक के सामने एक बहुत ही सौम्य और सुन्दर स्त्री के रूप में प्रस्तुत होती है। किसी योग्य गुरु या जानकार से पूछकर ही यक्षिणी साधना करनी चाहिए। यहां प्रस्तुत है यक्षिणियों की रहस्यमयी जानकारी।
याद रखे यह शास्त्रो के माध्यम से यह मात्र जानकारी आपको दी जा रही है साधक अपने विवेक से काम लें। यह साधना तीन रूप मे की जाती है, इस साधना को माता के रूप मे, बहन के रूप मे या प्रेमिका के रूप मे संपन्न की जाती है.
इन ऑठो यक्षिणियो की एक साथ मे भी साधना की जाती है जिसे अष्ट-यक्षिणी साधना कहते है. इनका मन्त्र है ... "ॐ ऐं श्रीं अष्ट यक्षिणी सिद्धिं सिद्धिं देहि नम" . अब जानते है आठो यक्षिणियो का स्वभाव.
सुर सुन्दरी यक्षिणी : इस यक्षिणी के बारे मे कहा जाता है कि इनकी साधना आप जिस रूप मे करना चाहते है ये उस रूप मे आकर स्वप्न के के माध्यम से आपकी सहायता करती है. यदि इनकी साधना पुरे नियम से व अच्छे उद्देश्य से कर रहे है तो साधना सिद्ध होने के बाद साधक को ऐश्वर्य, धन, संपत्ति आदि प्रदान करती है. ये अप्सरा की तरह से सुंदर होने की वजह से इन्हे सुर-सुंदरी कहा जाता है. सुर सुंदरी यक्षिणी का मंत्र है "ॐ ऐं ह्रीं आगच्छ सुर सुन्दरी स्वाहा "
मनोहारिणी यक्षिणी : मनोहारिणी यक्षिणी का चेहरा अण्डाकार, नेत्र हरिण के समान और रंग गौरा माना जाता है. इस यक्षिणी की साधना सिद्ध होने के बाद साधक का संपूर्ण शरीर संमोहक बन जाता है, उसकी जबर्दस्त आकर्षण शक्ति बढ जाती है. इसके अलावा यक्षिणी के द्वारा उसे भौतिक सुख की भी प्राप्ती होती है. इस साधना के दौरान साधक को चंदन की खुशबु का लगातार अहसास होता रहता है. मनोहारिणी यक्षिणी का मंत्र है "ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहारिणी स्वाहा "
कनकावती यक्षिणी :यह खूबसूरत यक्षिणी लाल रंग के वस्त्र धारण किये रहती है। कनकावती यक्षिणी साधना को सिद्ध करने के बाद साधक में तेज- चमक बढ जाती है, उसकी आकर्षण शक्ति इतनी बढ जाती है कि वह अपने विरोधी को भी मोहित करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। इसके अलावा ये यक्षिणी साधक की प्रत्येक मनोकामना को पूर्ण करने मे मदत करती है। कनकावती यक्षिणी का मंत्र है "ॐ ह्रीं हूं रक्ष कर्मणि आगच्छ कनकावती स्वाहा"
कामेश्वरी यक्षिणी : इस यक्षिणी का स्वभाव चंचल होता है. ये यक्षिणी पुरुष साधक को यौन समस्याओ को समाप्त करके पौरुष प्रदान करती है तथा स्त्री साधक को प्रबल आकर्षण प्रदान करती है. इसके अलावा साधक भौतिक रूप से भी सफल होने लगता है. कामेश्वरी यक्षिणी का मंत्र है "ॐ क्रीं कामेश्वरी वश्य प्रियाय क्रीं ॐ "
रति प्रिया यक्षिणी : इस यक्षिणी की देह स्वर्ण के समान होती है इस यक्षि़णी साधक को हर क्षेत्र मे आनंद प्रदान करती रहती है. ये अपने साधक यानी किसी भी स्त्री-पुरुष को कामदेव- रति के समान आकर्षण तथा सौंदर्य प्रदान करती है. रति प्रिया यक्षिणी का मंत्र है "ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ रति प्रिया स्वाहा "
पदमिनी यक्षिणी : ये श्यामवर्णा, सुंदर नेत्र और सदा प्रसन्नचित्र करने वाली यह यक्षिणी व अत्यक्षिक सुंदर देह वाली मानी गई है। पद्मिनी यक्षिणी अपने साधक में आत्मविश्वास व स्थिरता प्रदान करती है तथा सदैव उसे मानसिक शक्ति प्रदान करती हुई साधक को अपने क्षेत्र मे सफलता की ओर ले जाती है. यह हमेशा साधक के हर कदम पर उसका मनोबल को बढ़ाती रहती है। पद्मिनी यक्षिणी का मंत्र है "ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ पद्मिनी स्वाहा "
नटी यक्षिणी : कहा जाता है कि नटी यक्षिणी को विश्वामित्र ने भी सिद्ध किया था। यह यक्षिणी अपने साधक को शत्रुओ से सुरक्षा प्रदान करती है तथा हर तरह की दुर्घटना मे भी रक्षा करती है. नटी यक्षिणी का मंत्र है "ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ नटी स्वाहा "
अनुरागिणी यक्षिणी : ये सफेद चमकीले वस्त्र धारण करती है. यदि इनकी साधना सिद्ध हो जाय तो साधक को धन, मान, यश आदि से तृप्त कर देती है।अनुरागिणी यक्षिणी का मंत्र है "ॐ ह्रीं अनुरागिणी आगच्छ स्वाहा"
आशा है कि ये जानकारी आपके लिये उपयोगी होगी. इसे अपने विवेक के आधार पर ही किसी के मार्ग दर्शन मे करने की कोशिश करनी चाहिये.
पूर्व जन्म मे किये गये कर्मो के आधार पर ही इस जन्म मे ब्यक्ति नकारात्मक व
साकारात्मक उर्जा को लेकर जन्म लेता है. नकारात्मक व सकारात्मक उर्जा का अर्थ
है नेगेटिव व पॉजीटिव एनर्जी. इस उर्जा के अनुरूप ही ब्यक्ति का स्वभाव बनता
है. जैसे नकारात्मक उर्जा से ब्यक्ति मे
घमंड, डर, निराशा, लोभ, क्रोध, स्वार्थ तथा
सकारात्मक उर्जा से प्रेम, दया, आत्मविश्वास, प्रबल ईच्छाशक्ति, समाज सेवा, भक्ति,
गुरु सेवा ई. स्वभाव बनता
है इन दोनो उर्जाओ को ब्यक्ति अपने वाणी से, स्वभाव से तथा कर्म से
मजबूत करता रहता है. यानी नकारात्मक उर्जा ब्यक्ति मे डर, निराशा, लोभ, क्रोध,
स्वार्थ, बुरी आदते, ब्यसन ई को दिनो दिन बढाती रहती है. और सकारात्मक उर्जा यानी
पॉजीटिव एनर्जी दया, प्रेम, आत्मविश्वास, मनोबल, इच्छा शक्ति, भक्ति ईत्यादि को दिनो
दिन बढाती रहती है. नकारात्मक उर्जा से ब्यक्ति का धीरे धीरे पतन होना शुरु हो जाता
है. और सकारात्मक उर्जा से ब्यक्ति सफलता की ऊचाइयो पर पहुचना शुरु हो जाता है.
अब पृश्न यह उठता है कि कैसे हम अपनी नकारात्मक उर्जा को सकारात्मक उर्जा मे बदले...
यहॉ यह आप पर निर्भर करता है कि आप कौन सी उर्जा को बढावा दे रहे है.
सबसे पहले आप अपने आप का विश्लेषण करे
यानी अपने आपको जाने कि आप कौन सी उर्जा को बढावा दे रहे है.
अगर आप मे घमंड, लोभ, वाद विवाद, संघर्ष, विरोध, असहमति, अहंकार, घृणा,
संकुचित मानसिकता ईत्यादि आदते है या इनमे से
कोई आदत है तो आप नकारात्मक उर्जा
को बढावा दे रहे है.
इससे ये समस्या दिनो दिन बढती ही जायेगी. .... तो आइये जाने कि कैसे हम सकारात्मक
उर्जा का निर्माण करे...
ये कुछ उपाय आपको सकारात्मक उर्जा बढाने मे मदत कर सकते है..... जिससे आपके अंदर प्रेम, शान्ति, सुखद सम्बन्ध, अच्छी कार्य क्षमता, अच्छी समझ, ज्ञान और आनंद
की बढोतरी हो सके. क्योकि यही सकारात्मक उर्जा आगे चलकर कुंडलिनी शक्ति के जागरण मे
मदत करती है.
बिपरीत परिस्थिती मे भी अपने मन यानी स्वभाव पर नियंत्रण रखे.
जो दोस्त आपको मोटीवेट करते है यानी जो आपको हौसला देते है, उनकी ही संगत
करे.
यह मान कर चले कि दुनियॉ मे ऐसा कोई काम नही है, जो आसानी से सफल हो जाये.
इसलिये किसी भी तरह की अडचन आती है, तो मै उसका सामना करुंगा. ऐसी भावना रखे.
जरूरी नही है कि आप रोज धार्मिक पुस्तके या रोज सत्संग मे शामिल हो, आप
सिर्फ अच्छे कर्म करो यही बहुत है, क्योकि अच्छे कर्म मे ही ईश्वर बसते है.
याद रखे निगटिव उर्जा को पॉजीटिव उर्जा मे बदलना आसान नही होता, क्योकि निगेटिव
उर्जा आसानी से शरीर मे प्रवेश कर जाती है लेकिन हठी स्वभाव की वजह से जल्दी निकलती
नही. यही कारण है जब आप कुछ अच्छे कर्म करने की कोशिश करते है या ध्यान - धारना करते
है, तो नकारात्मक उर्जा ब्यवधान उत्पन्न करती है... क्योकि नकारात्मक उर्जा का काम
है समस्याये पैदा करना तथा सकारात्म उर्जा यानी पॉजीटिव एनर्जी का काम है समस्याओ
को समाप्त करना. इसलिये जब आप ध्यान - धारणा या अच्छे कर्म करने की कोशिश करते है
तो नकारात्मक उर्जा उस काम को न करने के लिये दबाव डालती है.
इसलिये जब आप धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन, सत्संग, मन्त्र जाप, निःस्वार्थ सेवा और अन्य सकारात्मक कर्म
करेगे तो नकारात्मक उर्जा के कारण ब्यवधान अवश्य उत्पन्न होगा लेकिन अपनी प्रबल
शक्ति से अपने मार्ग मे बढते रहे तो धीरे-धीरे नकारात्मक उर्जा कम होनी शुरु हो
जायेगी और आप अपने क्षेत्र मे, कार्य मे सफल होना शुरु हो जायेगे या आपकी मनोकामना
पूरी होनी शुरु हो जायेगी.
आशा है कि आप इन नियमो का पालन करेगे तथा अपने जीवन को सुखमय बनायेग
मंत्र जप क्या है? ... जब
किसी भी मंत्र का बार-बार उच्चारण किया जाता है तब उसमे
कंपन पैदा होता है. और शरीर के संबंधित भाग को वह उत्तेजित करता है. जैसे कि लक्ष्मी
का मंत्र जपते है तो बार-बार जपने से जो कंपन यानी वायब्रेशन
पैदा होता है, वह
मष्तिष्क के ऐसे भाग
को उत्तेजित करता है, जिसका संबंध निर्णय लेने की क्षमता पर पडता है, तब आप अपने
कार्य क्षेत्र या व्यवसाय के क्षेत्र मे जो निर्णय लेते है वह अचूक होता है इससे
पैसे आने के रस्ते खुलने शुरु हो जाते है. इसी तरह से माता सरस्वती माता सरस्वती का
मंत्र जब बार बार जपते है, उससे जो कंपन तैयार होता है, उसका असर आपके गले व बुद्धि
पर पडता है, जिससे मार्केटिंग क्षमता, भाषण कलॉ, अभिनय कलॉ, शिक्षा क्षेत्र, गायन
तथा लेखन क्षेत्र ई. मे सफलता मिलनी शुरु हो जाती है. इसी तरह से जब हम किसी भी
मन्त्र को बार-बार यानी हजारो बार जपते है, तो उससे निकलने वाली कंपन या उर्जा की
शक्ति से हम अपनी मनोकामना की पुर्ति कर सकते है.
मंत्र जप के ३ प्रकार होते है, पहला मानसिक जप, दूसरा वाचिक जप, तीसरा उपांशु जप.
मानसिक जपः देवी-देवताओ से संबंधित वैदिक मंत्र जपने मे किया जाता है. इसे मन ही मन
जपा जाता है.
वाचिक जपः इसका उपयोग देवी-देवताओ से संबंधित तांत्रिक तथा वाम मार्गी मंत्र जपने
मे किया जाता है. इसे जोर से बोलकर जपा जाता है. अघोर साधना, विद्वेषण, उच्चाटन,
मारण मे वाचिक जप किया जाता है.
उपांशु जपः यह मनोकामना से संबंधित जैसे आकर्षण, वशीकरण, हेल्थ संबंधित मन्त्रो मे
उपांशु जप किया जाता है, यह होठो को हिलाकर यानी बु्दबुदाकर जप किया जाता है, इसमे
मन्त्र की आवाज सामने वाले को सुनाई नही देती सिर्फ उसके होठ हिलते हुये दिखाई देते
है.
देवी-देवताओ से संबंधित मन्त्र अगर आप जप
रहे तो उसे नियमित और समय पर जपे.
मन्त्र जपते समय बीच से न उठे
मन्त्र जपते समय फोन, मोबाईल, घर के दरवाजे की घंटी को बंद रखे.
घर मे अगर्बत्ती या इत्र का उपयोग करे, जिससे मन्त्र जपते समय आपका मन लगा रहे.
जपने वाले मन्त्र को किसी न बताये.
रोज नियमित संख्या मे ही मंत्र जपे. जितना आप जाप कर सकते है उतनी ही मात्रा मे रोज
जपने का संकल्प करे.
कम से कम १ माला यानी १०८ बार मन्त्र जप अवश्य करे.
मन्त्र की जप संख्या जब बढने लगती है, तब शरीर मे कंपन या उर्जा बढने लगती है, उस
समय आपको पसीना या चक्कर आना शुरु हो जाता है, इससे डरे नही अभ्यास चालू रखे.
इन सभी नियमो का पालन करेगे तो पुजा, साधना मे आप अवश्य सफल होंगे.