Chaitra purnima pujan
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चैत्र पुर्णिमा पूजन
चैत्र हिन्दू पंचांग का पहला महीना होता है। अमावस्या के पश्चात चन्द्रमा जब मेष राशि और अश्विनी नक्षत्र में प्रकट होकर प्रतिदिन एक-एक कला बढ़ता हुआ १५ वें दिन चित्रा नक्षत्र में पूर्णता को प्राप्त करता है। तब वह मास 'चित्रा' नक्षत्र के कारण 'चैत्र' कहलाता है। हिन्दू नववर्ष के चैत्र मास से ही शुरू होने के पीछे पौराणिक मान्यता है कि भगवान ब्रह्मदेव ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि की रचना शुरू की थी। ताकि सृष्टि निरंतर प्रकाश की ओर बढ़े। इसे संवत्सर कहते हैं जिसका अर्थ है ऐसा विशेषकर जिसमें बारह माह होते हैं। पुराण अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने दशावतार में से पहला मत्स्य अवतार लेकर प्रलयकाल में अथाह जलराशि में से मनु की नौका का सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था। प्रलयकाल समाप्त होने पर मनु से ही नई सृष्टि की शुरुआत हुई।
दिव्ययोगशॉप के विशिष्ठ पंडित विधि-विधान से चैत्र पुर्णिमा पूजन संपन्न करते है। इसमे पृथम गणेश पूजन के साथ विष्णु भगवान की पूजा संपन्न की जाती है। तत्पश्चात चैत्र पुर्णिमा पूजन के बाद हवन संपन्न किया जाता है। इस पूजा से अच्छी सेहत मिलती है। घर मे शांती समाधान मिलता है।
चैत्र पुर्णिमा पूजन सामग्रीः
चन्द्र स्त्रोत बुक
चैत्र पुर्णिमा गुटिका
पर (मोती) माला
३ गोमती चक्र
सिद्ध विष्णु फोटो
चन्द्र माला
तांत्रोक्त चन्द्र नारियल
चैत्र पुर्णिमा पूजन की संपूर्ण विधि
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